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Showing posts from November, 2018

मन का पक्षी

मन का पक्षी उड़ा गगन में कभी इधर तो कभी उधर ज़मी से उड़ा था छूने नीले गगन को, भटका वो खूबसूरती को देख उतरा ज़मी पर ना लगा ध्यान उसका फिर से उड़ा फिर भटका, थक हार के आया ज़मी पर ना था उसका कोई एक ठिकाना जाता कहा वो? उसने लिया साहस से काम निकला वो जंगलों के बीच किया इकठ्ठा तिनकों को, दे पसीना-दे पसीना बना डाला अपना एक ठिकाना, अब न भटका अब न रोया क्योंकि था उसका एक ठिकाना मन का पक्षी उड़ा गगन में बिन तनाव, बिन परेशानी।

काली रात

ये काली रात लाल रात में गुजर रहीं, हम बड़े हो चाहे छोटे हस्पताल घूम के गुजर रही सबके दुआवो को इकठ्ठा कर चल पड़े सीधी पकडण्डी पकड़, खून के छीटों ने साहस को दबा दिया पर हम भी क्या कम थे उसे पटक के हरा दिया ये काली रात लाल रात में गुजर रहीं कुछ दिनों से धड़कनो का बुरा हाल है वो रो रहे कराह रहे चारों तरफ से बस दर्द की आवाज है पर मन ने कहा "शांत रह तू मस्त है" बिस्तर ने थपकी लगा के चैन दी ये काली रात लाल रात में गुजर रही।