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Showing posts from February, 2017

बस एक सोच।

एक खुबसूरत सी कहानी रच रहा था,  ना जाने क्यों फिर भी अधूरा सा लगता था, कभी कुछ था,कभी ना था... लेकिन कुछ तो था, जिससे कहानी खुबसूरत सी होती जा रही थी.. लेकिन वो था क्या? समझ से परे था। कभी अपने होने पर सके करता था तो कभी अपनी मायूसी पर.. सब तो था पास मगर कुछ तो कमी थी?? क्या थी कमी? क्या वो एक अधूरी कहानी सा मोड़ ले रही थी?? बहुत से प्रश्न उठ रहे थे मन में?? पर कोई उत्तर बताने वाला ना था। जाऊ तो जाऊ कहा? कौन इस वक़्त में साथ देगा ?? कोई तो? या कोई भी नी? जो भी था शायद खुद से उत्तर माँगना था। तो सुरु किया अपने आप से प्रश्न करना। सारे प्रश्न कर डाले अपने अंतर्मन से, लेकिन उत्तर कहा से मिलता? मन में तो बस प्रश्न ही थे... उदास होके बैठ गया एकांत जगह पर। आंसू की लड़ी बह रही थी आँखों से। खो गया अपने ही प्रश्न मै, उत्तर की तलाश मै.. कौन हूं मे? क्यों हु मे? क्या कभी कुछ ऐसा ना कर पाउँगा जो कहानी कह रही मेरी?? हार नहीं मानूँगा बढूंगा आगे। अब देखते हे वक़्त और में कब तक हौशला रखते हे। जो था सो था,अब जो हे वो हे,जो होगा वो तो होगा। बढ़ना हे

ममता।

प्यार है,ममता है,  उस माँ की आँखों में।  वो सूरज है न,  अरे! वही सूरज जो सुबह-सुबह क्षितिज से निकलता है, और सबको जगमगाती रौशनी से भर देता हे।  उसकी भी एक माँ होगी। जो उसके उठने से पहले उठ जाती होगी, अपने फुल से बच्चे के लिये।  वो माँ उसके लिए नास्ता तैयार करती होंगी। फिर जब वो उठता न होगा तो वो   उसके पास आके उसे उठाती होंगी।   और कहती होंगी,"उठ,जल्दी उठ!   देख सुबह होने का समय हो गया। तुझे सब बुला रहे हे।   उठ जा बेटे।" और न उठने पर क्या उसे भी उसके पिता   आके उसके उप्पर पानी डालते होंगे?  या उसको उसके बिस्तर से गिरा देते होंगे?  तब क्या सूरज की माँ अपने उनको डांटती होंगी?  की हटो जी,"क्यों बच्चे को परेशान कर रहे हो?  मै उठा रही हु न।  आप जाओ अपना काम देखो।  फिर वो माँ अपने रोते हुए बच्चे को चुप करा के कहती होंगी,  अब उठ जा और जा क्षितिज की और  सब तेरे लिए तड़प रहे हे। फिर वो उठता होगा और अपने माँ-बाप का आशिर्वाद लेके क्षितिज की और जाता होगा, सबके लिए खूब ढेर सारा रौशनी भर के। और फिर अपने रौशनी से सबको उजागर कर देता ह