"Beech Ka Rasta Nahin Hota" Pash पाश की कविता हमारी क्रांतिकारी काव्य–परंपरा की अत्यंत प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है । मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जनसंघर्षों में इसकी पक्षधरता बेहद स्पष्ट है । साथ ही यह न तो एकायामी है और न एकपक्षीय, बल्कि इसकी चिंताओं में वह सब भी शामिल है, जिसे इर प्रगतिशील काव्य–मूल्यों के लिए प्राय: विजातीय माना जाता रहा है । अपनी कविता के मा/यम से पाश हमारे समाज के जिस वस्तुगत यथार्थ को उद्घाटित और विश्लेषित करना चाहते हैं, उसके लिए वे अपनी भाषा, मुहावरे और बिंबों–प्रतीकों का चुनाव ठेठ ग्रामीण जीवन से करते हैं । घर–आँगन, खेत–खलिहान, स्कूल–कॉलेज, कोट–कचहरी, पुलिस–फौज और वे तमाम लोग जो इन सबमें अपनी–अपनी तरह एक बेहतर मानवीय समाज की आकांक्षा रखते हैं, बार–बार इन कविताओं में आते हैं । लोक–जीवन में ऊर्जा ग्रहण करते हुए भी ये कविताएँ प्रतिगामी आस्थाओं और विश्वासों को लक्षित करना नहीं भूलतीं और उनके पुनर्संस्कार की प्रेरणा देती हैं ...
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