Skip to main content

Aughad / औघड़

                                  Aughad / औघड़

‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। महानगरों में निवासते हुए ग्रामीण जीवन की ऊपरी सतह को उभारने और भदेस का छौंका मारकर लिखने की चालू शैली से अलग, ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास पाठकों के समक्ष कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में भारतीय ग्राम्य व्यवस्था के सामाजिक-राजनितिक ढाँचे की विसंगतियों को बेहद ह तरीके से उजागर किया गया है। ‘औघड़’ धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, महिला की दशा, राजनीति, अपराध और प्रसाशन के त्रियक गठजोड़, सामाजिक व्यवस्था की सड़न, संस्कृति की टूटन, ग्रामीण मध्य वर्ग की चेतना के उलझन इत्यादि विषयों से गुरेज करने के बजाय, इनपर बहुत ठहरकर विचारता और प्रचार करता चलता है। व्यंग्य और गंभीर संवेदना के संतुलन को साधने की अपनी चिर-परिचित शैली में नीलोत्पल मृणाल ने इस उपन्यास को लिखते हुए हिंदी साहित्य की चलती आ रही सामाजिक सरोकार वाली लेखन को थोड़ा और आगे बढ़ाया है।
                      click here to buy.




Comments

Popular posts from this blog

Theek Tumhare Peechhe By Manav Kaul

The book, 'Theek Tumhare Peechhe’ is a classic collection of short stories in Hindi. Authored by Manav Kaul, these stories reflect his profound writing skills and settings that take you on a serene journey. This book includes some gripping tales with poetic touches and each have an underlying message. The stories of this book were conceived when the author took break from play writing and did random musings on paper and on Instagram. The characters and their attitudes is based on contemporary lifestyles and evolving human nature. It also moves like a highly personal account of conversation between two people. The first edition of this book is published by Hind Yugm. (click here to buy) Plots of the stories of this book are borrowed from the author’s childhood which took place across many homes as he kept changing his cities and the sketches are rather more philosophical than real. The stories bring serenity of Kashmir, the calmness of banks of river Narmada, the rugged Hoshanga...

Beech Ka Rasta Nahin Hota

        "Beech Ka Rasta Nahin Hota"          Pash पाश की कविता हमारी क्रांतिकारी काव्य–परंपरा की अत्यंत प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है । मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जनसंघर्षों में इसकी पक्षधरता बेहद स्पष्ट है । साथ ही यह न तो एकायामी है और न एकपक्षीय, बल्कि इसकी चिंताओं में वह सब भी शामिल है, जिसे इर प्रगतिशील काव्य–मूल्यों के लिए प्राय: विजातीय माना जाता रहा है । अपनी कविता के मा/यम से पाश हमारे समाज के जिस वस्तुगत यथार्थ को उद्घाटित और विश्लेषित करना चाहते हैं, उसके लिए वे अपनी भाषा, मुहावरे और बिंबों–प्रतीकों का चुनाव ठेठ ग्रामीण जीवन से करते हैं । घर–आँगन, खेत–खलिहान, स्कूल–कॉलेज, कोट–कचहरी, पुलिस–फौज और वे तमाम लोग जो इन सबमें अपनी–अपनी तरह एक बेहतर मानवीय समाज की आकांक्षा रखते हैं, बार–बार इन कविताओं में आते हैं । लोक–जीवन में ऊर्जा ग्रहण करते हुए भी ये कविताएँ प्रतिगामी आस्थाओं और विश्वासों को लक्षित करना नहीं भूलतीं और उनके पुनर्संस्कार की प्रेरणा देती हैं ...