प्यार है,ममता है,
उस माँ की आँखों में।
वो सूरज है न,
अरे! वही सूरज जो सुबह-सुबह क्षितिज से निकलता है,
और सबको जगमगाती रौशनी से भर देता हे।
उसकी भी एक माँ होगी।
जो उसके उठने से पहले उठ जाती होगी,
अपने फुल से बच्चे के लिये।
वो माँ उसके लिए नास्ता तैयार करती होंगी।
फिर जब वो उठता न होगा तो वो
उसके पास आके उसे उठाती होंगी।
और कहती होंगी,"उठ,जल्दी उठ!
देख सुबह होने का समय हो गया। तुझे सब बुला रहे हे।
उठ जा बेटे।"
और न उठने पर क्या उसे भी उसके पिता
आके उसके उप्पर पानी डालते होंगे?
या उसको उसके बिस्तर से गिरा देते होंगे?
तब क्या सूरज की माँ अपने उनको डांटती होंगी?
की हटो जी,"क्यों बच्चे को परेशान कर रहे हो?
मै उठा रही हु न।
आप जाओ अपना काम देखो।
फिर वो माँ अपने रोते हुए बच्चे को चुप करा के कहती होंगी,
अब उठ जा और जा क्षितिज की और
सब तेरे लिए तड़प रहे हे।
फिर वो उठता होगा और अपने माँ-बाप का आशिर्वाद लेके क्षितिज की और जाता होगा, सबके लिए खूब ढेर सारा रौशनी
भर के।
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