एक खुबसूरत सी कहानी रच रहा था, ना जाने क्यों फिर भी अधूरा सा लगता था, कभी कुछ था,कभी ना था... लेकिन कुछ तो था, जिससे कहानी खुबसूरत सी होती जा रही थी.. लेकिन वो था क्या? समझ से परे था। कभी अपने होने पर सके करता था तो कभी अपनी मायूसी पर.. सब तो था पास मगर कुछ तो कमी थी?? क्या थी कमी? क्या वो एक अधूरी कहानी सा मोड़ ले रही थी?? बहुत से प्रश्न उठ रहे थे मन में?? पर कोई उत्तर बताने वाला ना था। जाऊ तो जाऊ कहा? कौन इस वक़्त में साथ देगा ?? कोई तो? या कोई भी नी? जो भी था शायद खुद से उत्तर माँगना था। तो सुरु किया अपने आप से प्रश्न करना। सारे प्रश्न कर डाले अपने अंतर्मन से, लेकिन उत्तर कहा से मिलता? मन में तो बस प्रश्न ही थे... उदास होके बैठ गया एकांत जगह पर। आंसू की लड़ी बह रही थी आँखों से। खो गया अपने ही प्रश्न मै, उत्तर की तलाश मै.. कौन हूं मे? क्यों हु मे? क्या कभी कुछ ऐसा ना कर पाउँगा जो कहानी कह रही मेरी?? हार नहीं मानूँगा बढूंगा आगे। अब देखते हे वक़्त और में कब तक हौशला रखते हे। जो था सो था,अब जो हे वो हे,जो होगा वो तो होगा। बढ़ना...